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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःउन्मादिनी


पवित्र ईर्ष्या

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विमला कई दिनों तक बीमार रही, विनोद प्रायः रोज उसे देखने आता रहा। इस बीच में अनन्तराम ने विनोद का सब हाल मालूम कर लिया और उन्होंने विनोद को सब प्रकार से विमला के योग्य समझा। उन्होंने ईश्वर को कोटिशः धन्यवाद दिए, जिसने घर बैठे विमला के लिए योग्य पात्र भेज दिया था। विनोद बसंतपुर का निवासी था और यहाँ कॉलेज में एम०ए० फाइनल में इसी साल बैठने वाला था। परिवार में पिता को छोड़कर और कोई न था। पिता डिप्टी कलेक्टर, और बसंतपुर के प्रसिद्ध रईस थे।

विनोद स्वयं बहुत सुंदर, स्वस्थ, तेजस्वी और मनस्वी नवयुवक था। अन्य नवयुवकों की तरह उसमें उच्छृंखलता नाम मात्र को न थी। वह विमला को देखने आता था अवश्य, पर जब तक अनन्तराम जी स्वयं उसे अपने साथ लेकर भीतर न जाते, वह कभी अंदर न आता। उसके इस व्यवहार और अध्ययनशीलता तथा उसकी विद्या और बुद्धि पर अनन्तराम और उनकी स्त्री-दोनों ही मुग्ध थे और इसीलिए अपनी प्यारी पुत्री को उन्होंने विनोद को सौंप दिया। विनोद भी विमला के शील-स्वभाव पर मुग्ध था। इसके पहिले उसने विवाह की तरफ सदा अनिच्छा ही प्रकट की थी। किंतु विमला के साथ जो विवाह का प्रस्ताव हुआ तो उसे वह टाल न सका, प्रसन्नता से स्वीकार ही किया।

विनोद विमला को इतना अधिक चाहते थे कि विवाह के बाद, वह दो-तीन महीने तक, माँ के घर वापिस न आ सकी। विनोद उसे रोकते न थे। पर विमला जानती थी कि उसके जाने के बाद उन्हें कितना बुरा लगेगा। माता-पिता से मिलने के लिए कभी-कभी वह बहुत विकल भी हो जाती थी, उसकी इस विकलता से विनोद को भी दुःख होता था। किंतु वह विमला का क्षणिक वियोग भी सहने को तैयार न था। यहाँ तक कि उसने अपने मित्रों से मिलना-जुलना बंद-सा कर रखा था, उसका अधिकांश समय उनके शयनगार में ही बीतता, वहीं वह पढ़ते-लिखते, और विमला वहीं उनकी आँखों के सामने रहती।

विवाह के तीन महीने बाद विनोद के पिता की बदली उसी शहर में हो गई, जहाँ विमला का मैका था। विमला और विनोद दोनों ही इससे प्रसन्‍न हुए, अब विमला को माता-पिता से मिलने की भी सुविधा हो गई, और विनोद का भी साथ न छूटता था। अब वह प्रायः दूसरे-तीसरे दिन घंटे दो घंटे के लिए आकर अपने माँ-बाप से मिल जाया करती थी।

इसी प्रकार एक दिन विनोद के साथ विमला अपनी माँ के घर आई। विमला तो अंदर चली गई, विनोद वहीं हाल में आई चिट्ठियों को देखने लगे। एक पत्र विदेश से आया था। लिखावट उसके मित्र और सहपाठी अखिलेश की थी। पत्र था विमला के लिए। विनोद ने उत्सुकता से पत्र को खोला, जिसमें लिखा था,

प्यारी विन्‍नो,
अब तो तुम्हारे पत्रों के लिए बड़ी लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ती है। क्या तुम्हें पत्र लिखने तक का अवकाश नहीं मिलता? अपने नए साथी के कारण तो मुझे नहीं भूली जा रही हो ? यदि ऐसा होगा तो भाई मेरे साथ अन्याय होगा। पत्रों का उत्तर तो कम-से-कम दे दिया करो। चाची को प्रणाम कहना और अब पत्र देर से लिखा तो मैं भी नाराज हो जाऊँगा, समझी!
तुम्हारा
अखिलेश

पत्र पढ़कर विनोद स्तंभित-से रह गए। वह समझ न सके कि कब और कैसे अखिलेश की विमला से पहिचान हुई। दो साल पहिले, सात साल तक अखिलेश ने उनके साथ ही पढ़ा। उसने कभी भी विमला का जिक्र उनसे नहीं किया, और न विवाह के बाद, आज तक विमला ने ही कूछ अखिलेश के विषय में उनसे कहा।

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